सर्व सिकशा अबियाँ का असर् हमें नहीं पता
सड़क पे भिकारी थो मांग रहाता "1 रुपया प्लीज'
ऊँची एमारथें जैसे चू रही आसमान
शीशे का महल महल बरा है
न दिका कोई सम्शान
अरे जीने वलोंकेलिये जगा नहीं
मुर्देका काहे निशान
शहर वालोकी सोच गजब है
पगला गया इंसान
खाने पीनेका कोई कमी नहीं
सस्ते से महंगा मौजूद
मुथ्नेकी बात मत करना
वर्ना आस्पताल बी मौजूद
पब्लिक टॉयलेट पे गयेतो ओही असर है भैय्या
जावोगे रोड़ पे तो अन्नागारिक कहलाओगे रे मिय्या
सिक्षा में ये न बताया क्या कहापे मुथ्ना भैयया
बताने वाला बन्नाया नहीं थो तुमारा दोष क्या मिय्याँ
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