समजावू तो किसे कैसा
जब कुछ न चले बिना पैसा
सूरज कि आवश्यकता न पड़ेगा किसीको
जब पैसा बीचमे है खडनेको
मिलेंगे सब कुछ इसी से हमें
मरेंगे हर कोई इसी के लिए
इसी में लगके बहुत कुछ भुलगाये
प्यार कि हवा रुटके चलेगये
हर तारफ है इसकी चमक
पर, बतावो मेरे साथी
है कोई नज़र में
जिसकी मान (जान ) है बाकी